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भारत-चीन सीमा पर गश्ती समझौते से विश्वास बहाल करने में लगेगा समय: सेना प्रमुख

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भारत-चीन सीमा पर गश्ती समझौता: नई उम्मीदें और चुनौतियाँ

भारत और चीन के बीच विवादास्पद हिमालयी सीमा पर सुरक्षा और आस्थाई संबंधों को मजबूत करने की दिशा में हाल ही में हुए गश्ती समझौते को एक बड़ा कदम माना जा रहा है। इस समझौते के माध्यम से दोनों देश वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर बलों के विसंयोजन के लिए सहमत हुए हैं। भारतीय सेना प्रमुख, जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा है कि इस समझौते से विश्वास पुनर्स्थापन का काम शुरू हुआ है, परंतु यह प्रक्रिया लंबी चलेगी। 2020 में शुरू हुई सीमा पर संघर्ष की स्थिति और उसके परिणामस्वरूप दोनों देशों की सेनाओं की तैनाती ने स्थिति को और जटिल बना दिया था।

यह समझौता उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति है, जो दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। हालांकि, इससे तुरंत यह स्पष्ट नहीं होता कि एलएसी पर तैनात हजारों अतिरिक्त सैनिकों की वापसी होगी या नहीं। इससे पूर्व के स्टैंडऑफ के कारण सीमा पर लंबे समय तक तनाव और सैन्य मुठभेड़ की स्थिति बनी रही थी। प्रमुख कूटनीतिक गतिविधियों के बीच, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में बैठक की संभावना भी इस समझौते के साथ बढ़ गई है।

गश्ती प्रोटोकॉल पर समझ और उसका प्रभाव

विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने इस बारे में जानकारी दी कि यह समझौता एलएसी के गश्ती प्रोटोकॉल पर नई समझ विकसित करता है, जो 2020 में शुरू हुए संघर्ष के समाधान में सहायक हो सकता है। हालांकि, सेना प्रमुख ने चेतावनी दी है कि प्रारंभिक चरण में केवल सरल मुद्दों का समाधान हुआ है, लेकिन अधिक जटिल चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं। यह आवश्यकता है कि स्थिति को अधिक संवेदनशील तरीके से संभाला जाए और पुराने हालात को पुनर्स्थापित किया जाए।

गौरतलब है कि पिछले दो वर्षों में दोनों देशों के बीच तनाव और अविश्वास की स्थिति बनी रही है। सीमा पर स्थाई शांति स्थापित करने के लिए दोनों देशों के बीच सूचनाओं का सही आदान-प्रदान और कार्यवाही की सटीकता बहुत महत्वपूर्ण होगी। हालांकि गश्ती समझौता एक सकारात्मक दिशा की ओर इशारा करता है, परन्तु यह स्पष्ट है कि इस दिशा में आगे बढ़ना आसान नहीं होगा। द्विपक्षीय धैर्य और कूटनीतिक हालात को समझने की आवश्यकता होगी।

चना कि लंबे समय से चले आ रहे तनावपूर्ण संबंधों को सुधारा जा सकेगा, या फिर यह एक मारक समस्या बना रहेगा। वैश्विक परिदृश्य में भारत और चीन के उभरते संबंधों की दिशा और उनकी महत्वाकांक्षाओं के बीच सामंजस्य स्थापित करने के प्रयासों का यह एक महत्त्वपूर्ण पहलू है।