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कोच्ची स्थित थिएटर समूह के लिए बड़ी उपलब्धि: 'आट्टम' ने 70वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में मारी बाजी

मनोरंजन

कोच्ची के थिएटर समूह की बड़ी सफलता

मलयालम फिल्म 'आट्टम' ने इस बार नई दिल्ली में आयोजित 70वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में तीन प्रमुख पुरस्कारों पर अपना कब्ज़ा जमाया है। इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ पटकथा और सर्वश्रेष्ठ संपादन के लिए नवाज़ा गया है। इस ऐतिहासिक उपलब्धि के बाद, कोच्ची के व्यपिन के स्थित नायारमबलम गांव में स्थापित थिएटर समूह लोकधर्मी में खुशी की लहर दौड़ गई है। ये थिएटर समूह पिछले तीन दशकों से कला और संस्कृति को प्रोत्साहित करता आ रहा है।

लोकधर्मी थिएटर समूह की स्थापना

लोकधर्मी थिएटर समूह की स्थापना 1991 में चंद्रदासन ने की थी। इस समूह ने 'आट्टम' के प्रमुख कलाकारों और निर्देशक आनंद एकर्शी के सफर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चंद्रदासन का कहना है कि 'आट्टम' के कई कलाकार 2004 से लोकधर्मी के साथ जुड़े हुए हैं और उन्होंने यहीं से अपनी अभिनय कौशल को निखारा है।

जॉली एंथनी का अनुभव

जॉली एंथनी, जिन्होंने फिल्म 'आट्टम' में जॉली का किरदार निभाया है और पेशे से एक टाइलर हैं, ने अपनी सफलता का श्रेय लोकधर्मी की अभिनय कार्यशालाओं को दिया। उन्होंने बताया कि इन कार्यशालाओं ने उनका आत्मविश्वास बढ़ाया और उनके अभिनय कौशल को निखारा।

सनोश मुरली का सफर

सनोश मुरली, जो एक मंदिर में पर्कशनिस्ट हैं और 'आट्टम' में सनोश का किरदार निभा चुके हैं, 2004 से लोकधर्मी के सदस्य हैं। उन्होंने इस समूह के साथ जुड़ने को अपने जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ कहा और बताया कि यहां उन्हें नई दोस्ती और संबंध बनाने का मौका मिला।

संतोष पिरावम की कहानी

संतोष पिरावम, जो एक सब्जी की दुकान चलाते हैं और केरल क्राइम फाइल्स और जननम 1947 जैसी वेब सीरीज और फिल्मों में भी नजर आ चुके हैं, ने भी अपनी कला यात्रा का श्रेय लोकधर्मी को दिया। उन्होंने बताया कि इस समूह में उन्हें शानदार प्रशिक्षण मिला, जिसने उनकी कला को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया।

समूह की तीन दशक की समर्पित यात्रा

समूह की तीन दशक की समर्पित यात्रा

लोकधर्मी थिएटर समूह की पिछले तीन दशकों की यात्रा थिएटर और कला के क्षेत्र में समर्पण की एक मिसाल है। चंद्रदासन ने 50 से अधिक नाटकों का निर्देशन और डिज़ाइन किया है। 'आट्टम' की सफलता इस समूह की अथाह मेहनत और सामूहिक प्रयासों का परिणाम है।

टिप्पणि

  • Snehal Patil

    Snehal Patil

    17/अग॰/2024

    ये सब नाटकीय बकवास क्यों चल रहा है? असली कला तो वो है जो लोगों को रोज़ का खाना देती है ना कि फिल्मों में नाम कमाना।

  • Nitin Soni

    Nitin Soni

    17/अग॰/2024

    इतनी मेहनत का इतना सम्मान मिलना बहुत खुशी की बात है। ये लोग असली हीरे हैं।

  • RAKESH PANDEY

    RAKESH PANDEY

    17/अग॰/2024

    लोकधर्मी के बारे में जानकर बहुत प्रभावित हुआ। एक गांव के थिएटर समूह ने राष्ट्रीय स्तर पर ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। ये सिर्फ अभिनय नहीं, ये जीवन बदलने की कहानी है। कला का असली मूल्य इसी में है कि वो आम इंसान को अपनी दुनिया से जोड़ दे।

  • varun chauhan

    varun chauhan

    17/अग॰/2024

    बहुत अच्छा हुआ। ये लोग असली नायक हैं। 🙏

  • Suhas R

    Suhas R

    17/अग॰/2024

    ये सब फिल्मों का नाटक है। असल में ये सब गवर्नमेंट के पैसों से चल रहा है। कोई नहीं जानता कि ये सब किसके लिए है। लोकधर्मी? बस एक नाम है।

  • Sumit Bhattacharya

    Sumit Bhattacharya

    17/अग॰/2024

    लोकधर्मी के इतिहास को देखकर लगता है कि संस्कृति का संरक्षण केवल बड़े शहरों में नहीं होता। गांव के एक छोटे से समूह ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी आवाज़ उठाई। ये एक ऐतिहासिक विरासत है।

  • Prince Ranjan

    Prince Ranjan

    17/अग॰/2024

    अरे ये सब फिल्म बनाने वाले तो बस नाम बनाने के लिए लोकधर्मी का नाम लेते हैं। असली कला तो बॉलीवुड में है। ये लोग तो बस गांव के लोग हैं जिन्हें कुछ दिखाना है। ये सब एक नाटक है।

  • Sweety Spicy

    Sweety Spicy

    17/अग॰/2024

    इस फिल्म की सफलता ने दिखा दिया कि जब असली कला असली जीवन से जुड़ी होती है तो वो दुनिया को हिला देती है। ये लोग बस नाटक नहीं करते, वो जीवन बदल देते हैं। जॉली, सनोश, संतोष - ये सब नाम अब कला के इतिहास में दर्ज हो चुके हैं।

  • Maj Pedersen

    Maj Pedersen

    17/अग॰/2024

    इस उपलब्धि को देखकर लगता है कि हमारे देश में अभी भी ऐसे लोग हैं जो बिना किसी बड़े बजट के असली कला का संचालन करते हैं। ये लोग वास्तविक नायक हैं।

  • Pradeep Asthana

    Pradeep Asthana

    17/अग॰/2024

    अरे ये लोग तो बस अपनी फिल्म बनवा रहे हैं। ये सब तो बस नाटक है। कोई जानता है कि ये लोग कितने लोगों को बचाते हैं? बस एक फिल्म के नाम पर सब कुछ बना दिया गया है।

  • Shreyash Kaswa

    Shreyash Kaswa

    17/अग॰/2024

    भारत की संस्कृति का असली दर्पण यही है। गांव के एक थिएटर समूह ने राष्ट्रीय पुरस्कार जीते। ये गर्व की बात है। ये लोग हमारे देश के असली हीरे हैं।

  • Nikita Gorbukhov

    Nikita Gorbukhov

    17/अग॰/2024

    ये सब बकवास है। असली कला तो बॉलीवुड में है। ये लोग बस फिल्म बनवाने के लिए गांव का नाम लेते हैं। इन्हें तो अपने घर में बैठकर नाटक करना चाहिए। 😒

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