जब Ahoi Ashtami 2025नई दिल्ली मनाया गया, तो घर‑घर में माताएँ गहरी श्रद्धा के साथ नीरजला व्रत रख रही थीं। यह पर्व मुख्यतः माता आहौई, जिसे हिन्दू पौराणिक कथा में गौरी माता या भगिनी लक्ष्मी कहा जाता है, के सम्मान में किया जाता है।
पाँच प्रमुख समाचार स्रोत – Times of India, Drik Panchang, India TV News और Economic Times के अनुसार, इस वर्ष का व्रत 13 अक्टूबर, सोमवार को था।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और धार्मिक महत्त्व
आहौई अष्टमी का मूल विचार प्राचीन वैदिक ग्रन्थों में मिलता है, जहाँ माँ‑गणनाओं ने अपने पुत्रों के स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिये व्रत रखा था। समय के साथ यह अनुष्ठान उत्तर भारत में माँ‑धर्म का प्रतीक बन गया, जबकि दक्षिण भारत में इसे आहौई अथे कहा जाता है। पहले यह केवल पुत्रों के लिये था, पर अब सभी बच्चों की भलाई के लिये समान रूप से मनाया जाता है।
जैसे अच्चर्य.indu Prakash ने बताया, “आहौई अष्टमी का मूल उद्देश्य मातृ प्रेम को प्रदर्शित करना और बच्चों को सामाजिक एवं आर्थिक बाधाओं से बचाना है।”
2025 की तिथि, पंचांग और विशेष मुहूर्त
ड्रिक पंचांग ने बताया कि आहौई अष्टमी 2025 कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर आती है, जो उत्तर भारत में पूर्णिमंत कैलेंडर के अनुसार है, जबकि गुजरात‑महाराष्ट्र आदि में अम्मांटा कैलेंडर के अनुसार यह अश्विन महीने में पड़ती है। विशेष पूजा मुहूर्त 05:53 बजे से 07:08 बजे तक तय किया गया, यानी ठीक 1 घंटा 15 मिनट का समय।
व्रत तोड़ने का परम्परागत समय सूर्यास्त के बाद, तारे दिखने पर 06:17 बजे आस‑पास होता है, क्योंकि इस समय आकाश में पहली चमक बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल मानती है।
कहानी को समझने के लिये 2025 के अन्य प्रमुख त्यौहारों को देखें: करवा चौथ 09 अक्टूबर को, और दिवाली 21 अक्टूबर को, यानी आहौई अष्टमी दोनों के बीच में पड़ती है, जिससे महिलाओं के व्रत‑संकल्प का एक क्रम बन जाता है।
मुख्य अनुष्ठान और रिवाज़
- सवेरे नीरजला व्रत – पानी व भोजन दोनों से पूरी दिन abstain किया जाता है।
- संध्या में माता आहौई की मूर्ति या चित्र के सामने पकौड़ी, लड्डू, अटा‑पोहा जैसी पकवान रखे जाते हैं।
- कन्यादान के समान बच्चों की तस्वीरों को तेल‑दीपक से जगमगाते हुए सराहना।
- आहौई अष्टमी के दिन विशेष ‘राधा कुंड स्नान’ के लिये कुछ क्षेत्रों में कुंड में इकट्ठे पानी में स्नान किया जाता है, परन्तु यह प्रथा सभी स्थानों पर नहीं देखी गई।
एक 28‑वर्षीया दिल्ली की गृहिणी, सुष्मिता देवी, ने कहा: “मैं हर साल इस व्रत को अपने दो बच्चों के भविष्य की सुरक्षित रखरखाव के लिये रखती हूँ, और यह मानो एक अनकहा वादा है।”
माताओं की भूमिका और आधुनिक परिप्रेक्ष्य
आजकल सोशल मीडिया पर #AhoiAshtami जैसे टैग के साथ लगभग 2.3 करोड़ पोस्ट देखी जाती हैं, जो इस बात का संकेत है कि युवा पीढ़ी भी इस परम्परा को डिजिटल रूप में आगे बढ़ा रही है। Times of India ने रिपोर्ट किया कि महामारी‑के बाद 2023‑24 में व्रत रखने वाली महिलाओं की प्रतिशतता में 12 % का उछाल आया।
साथ ही, शहरी क्षेत्रों में जल‑रहित व्रत की बजाय ‘पानी‑शरीर’ (पानी के साथ हल्का भोजन) अपनाया जा रहा है, जिससे स्वास्थ्य‑सेवा पेशेवरों की आशंकाओं को दूर किया जा रहा है।
सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
आहौई अष्टमी के दौरान मिठाई, पूजा‑सामग्री, और तहजीबों की बिक्री में 18 % की वृद्धि देखी गई, जैसा कि Economic Times ने बताया। छोटे‑बड़े किरानों में इस मौसमी मांग के कारण आजी‑वित्तीय स्थिति में छोटी‑छोटी राहत मिली।
मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. रिया शर्मा का कहना है, “ऐसे सामुदायिक व्रत कार्यक्रम महिलाओं को सामाजिक समर्थन प्रणाली प्रदान करते हैं, जो मानसिक स्वास्थ्य में मददगार साबित होते हैं।”
भविष्य में क्या संभावनाएँ?
आगामी वर्षों में विशेषज्ञों का अनुमान है कि आहौई अष्टमी का प्रभावी प्रचार‑प्रसार डिजिटल माध्यमों से और भी तेज़ होगा। 2026 में राज्य‑स्तरीय योजनाओं में इस पर्व को ‘महिला सशक्तिकरण’ की एक श्रेणी के तहत शामिल करने की बात सरकारें कर रही हैं।
यदि इस गति को बनाए रखा गया, तो अगले दशक में इस व्रत को लेकर औसत उपस्थिति में 25 % की वृद्धि हो सकती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
आहौई अष्टमी किस दिन पड़ती है और क्यों खास है?
2025 में यह 13 अक्टूबर, सोमवार को थी। यह कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर पड़ती है, जिससे माताओं को अपने बच्चों की लंबी आयु और समृद्धि की कामना करने का विशेष अवसर मिलता है।
व्रत कब और कैसे तोड़ना चाहिए?
संध्या के बाद, जब तारे दिखाई दें (लगभग 06:17 बजे), तो माँ‑बच्चे मिलकर हल्का भोजन जैसे खीर या फल लेकर व्रत तोड़ती हैं। परम्परागत रूप से यह नीरजला (पानी‑बिना) व्रत होता है।
क्या पुरुष भी इस त्यौहार में भाग ले सकते हैं?
परम्परागत रूप से यह माताओं का पर्व है, पर हाल ही में कई परिवारों में पिता और भाई भी अपने छोटे‑बच्चों की भलाई की कामना में पूजा‑पाठ में शामिल हो रहे हैं।
आहौई अष्टमी के आर्थिक प्रभाव क्या हैं?
पूजा‑सामग्री, मिठाई और विशेष वस्तुओं की मांग में लगभग 18 % की साल‑दर‑साल वृद्धि देखी गई है, जिससे स्थानीय बाजारों और छोटे व्यापारीयों को लाभ मिलता है।
आगामी वर्षों में इस त्यौहार का भविष्य कैसे दिखता है?
डिजिटल प्लेटफॉर्म पर जागरूकता बढ़ने से अधिक महिलाएँ और परिवार इस व्रत को अपनाने की संभावना है। सरकारी योजनाओं में इसे ‘महिला सशक्तिकरण’ के तहत शामिल करने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं।
टिप्पणि
Yogitha Priya
13/अक्तू॰/2025देखो, ये सब व्रत और पूजा तो बस सामाजिक नियंत्रण का ढोल है, जो महिलाओं को हमेशा सब कुछ त्याग करने पर मजबूर करता है। हममें से कई लोग इस परंपरा को अपनी पहचान समझते हैं, लेकिन असल में ये बस एक ढांचा है जिसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता घुटती है। हर साल सोशल मीडिया पर #AhoiAshtami का दहाड़ा सुनते‑सुनते लगता है कि हमारा दिमाग धुंधला हो रहा है। इसलिए हमें इस परंपरा को खुले दिमाग से देखना चाहिए और अपनी सीमाओं को समझना चाहिए।
Rajesh kumar
13/अक्तू॰/2025आहौई अष्टमी जैसे त्यौहार हमारे राष्ट्रीय धरोहर का गौरवशाली हिस्सा हैं, और इन्हें भूलना या घटिया बनाना हमारे इतिहास के विरुद्ध है। इस वर्ष का व्रत 13 अक्टूबर को हुआ, जो पूरी तरह से भारतीय पंचांग के अनुसार निर्धारित था, और इसे बाहरी एजेंसियों के मतभेदों से नहीं बदला जा सकता। हमारे पूर्वजों ने इस रीत को गढ़ा था ताकि माताएँ अपने बच्चों की सुरक्षा और समृद्धि की कामना कर सकें, और यही हमारे राष्ट्र को मजबूत बनाता है। आजकल की विदेशी आदतों और पश्चिमी विचारों का प्रभाव इस पवित्र परम्परा को धुंधला करने की कोशिश करता है, पर हमें दृढ़ रहना चाहिए। इसलिए हर भारतीय को इस व्रत को मनाना चाहिए, चाहे वह शहर में हो या गाँव में, क्योंकि यही भारतीयता की असली पहचान है। अंत में कहूँ तो, जो भी इस रिवाज़ को छोटा समझता है, उसे अपने दिल की सच्ची शुद्धता पर विचार करना चाहिए।
Hemakul Pioneers
13/अक्तू॰/2025विषय को देखना चाहिए जैसे एक नदी की धारा, जहाँ परंपरा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता दोनों मिलते हैं। आहौई अष्टमी का मूल उद्देश्य मातृ प्रेम को उजागर करना है, जो सामाजिक संगति को भी सुदृढ़ बनाता है। इस रिवाज़ में आशा और आस्था का संगम है, जिससे परिवार में शांति और सौहार्द बना रहता है। इसलिए इसे केवल नियंत्रण के रूप में नहीं, बल्कि सामुदायिक बंधन के रूप में समझना चाहिए।
Shivam Pandit
13/अक्तू॰/2025बिलकुल सही कहा, यह त्यौहार हमारी पहचान है!! लेकिन साथ ही, हमें इसे लचीला बनाते हुए नई पीढ़ी के लिये अनुकूल करना चाहिए,, ताकि पुरानी मान्यताएँ बोझ न बनें,,। इस प्रकार हम विरासत को संरक्षित कर सकते हैं,, और साथ ही सामाजिक प्रगति को भी बढ़ावा दे सकते हैं,,।
parvez fmp
13/अक्तू॰/2025OMG ये व्रत बड़ा कूल लग रहा है ✨
s.v chauhan
13/अक्तू॰/2025भाईसाब, ये सिर्फ कूल नहीं बल्कि हमारी संस्कृति की रीढ़ भी है, और इसे अपनाना हमारे भीतर की शक्ति को जागरूक करता है। इसमें शामिल परंपराएँ, जैसे नीरजला व्रत और तस्वीरों को दीपक से सजाना, हमें अपने बच्चों के भविष्य के लिये शुभकामनाएँ भेजती हैं। इसलिए इसे मज़ेदार और गंभीर दोनों रूप में देखना चाहिए, ताकि हर परिवार में उत्सव का सही अभिप्राय बना रहे।