आरबीआई - नवीनतम बैंकींग और आर्थिक खबरें
अगर आप RBI की नई घोषणाओं या दर बदलाव को लेकर जिज्ञासु हैं, तो यह पेज आपके लिए बना है। यहाँ आपको मौद्रिक नीति, रेपो रेट, डिजिटल भुगतान और वित्तीय समावेशन से जुड़ी हर खबर मिलेगी—सिर्फ कुछ क्लिक में।
आरबिआई की प्रमुख घोषणाएँ
हर तिमाही RBI अपना monetary policy review करता है। इस दौरान रेपो रेट, वार्षिक महंगाई लक्ष्य और बैंकों के लोन दिशा‑निर्देश बदलते हैं। जब भी ये बदलाव आते हैं, हम तुरंत उनका सारांश तैयार करके आप तक पहुँचाते हैं—ताकि आप अपने बचत या निवेश योजना को जल्दी से अपडेट कर सकें।
साथ ही RBI द्वारा लॉन्च किए गए नए डिजिटल स्कीम्स जैसे UPI‑आधारित भुगतान समाधान, ग्रामीण बैंकींग के लिए नई सुविधाएँ और फाइनेंसियल इंक्लूजन पहल भी इस टैग में शामिल हैं। इन बातों को समझना आसान है क्योंकि हम तकनीकी जार्गन को सरल शब्दों में तोड़ते हैं।
आरबिआई से जुड़ी ताज़ा खबरें कैसे पढ़ें
हमारा टैग पेज कई छोटे‑छोटे लेखों का संग्रह है, जहाँ प्रत्येक पोस्ट के नीचे एक छोटा सारांश और मुख्य कीवर्ड दिखता है। अगर आप किसी विशेष विषय—जैसे "ब्याज दर में वृद्धि" या "डिजिटल मुद्रा"—में गहराई से पढ़ना चाहते हैं, तो उस शीर्षक पर क्लिक करें। इससे आपको पूरी रिपोर्ट मिल जाएगी, जिसमें आंकड़े, विशेषज्ञ राय और संभावित प्रभाव भी शामिल होते हैं।
आपके पास यह विकल्प है कि आप ताज़ा लेखों को तारीख के अनुसार देख सकें या लोकप्रियता के आधार पर फ़िल्टर कर सकते हैं। इससे आपका समय बचता है और आप वही पढ़ते हैं जो आपके लिये सबसे ज़्यादा प्रासंगिक हो।
आगे बढ़ते हुए, हम नियमित रूप से RBI की वार्षिक रिपोर्ट, वित्तीय स्थिरता समीक्षा और वैश्विक आर्थिक संकेतकों के साथ तुलना भी जोड़ेंगे। इसका मकसद है आपको एक ही जगह पर व्यापक दृष्टिकोण देना, ताकि आप बेहतर वित्तीय फैसले ले सकें।
तो अब देर किस बात की? नीचे स्क्रॉल करके सबसे नई RBI खबरों को पढ़िए और अपने आर्थिक ज्ञान को अपडेट रखिए। आपका हर सवाल हमें मिलते‑जुलते लेख में जवाब मिलेगा—बिना किसी जटिल शब्दावली के।
आरबीआई नीति पर अबीक बारुआ की निराशा: उम्मीदें, वैश्विक प्रभाव और घरेलू कारक
अबीक बारुआ, एचडीएफ़सी बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री, ने आरबीआई की नीति के परिणाम पर निराशा व्यक्त की। उनका मानना था कि मौद्रिक नीति समिति के कुछ सदस्यों की अलग राय हो सकती है। बारुआ ने आरबीआई के कठोर रुख को नियंत्रित करने के बजाय अधिक संवेदनशीलता दिखाने की मांग की। उन्होंने वैश्विक आर्थिक संदर्भ में भारत की आर्थिक स्थिति पर इसके संभावित प्रतिकूल प्रभाव पर जोर दिया।
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