आरबीआई नीति पर अबीक बारुआ की निराशा: उम्मीदें, वैश्विक प्रभाव और घरेलू कारक
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति के हालिया परिणाम पर एचडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री, अबीक बारुआ की प्रतिक्रिया ने आर्थिक जगत में नए सवाल खड़े कर दिए हैं। बारुआ ने विशेष रूप से आरबीआई के लगातार कठोर रुख पर अपनी निराशा प्रकट की, जो उन्होंने कहा कि भारत के आर्थिक परिदृश्य के लिए सहायक नहीं है।
बारुआ ने उम्मीद जताई थी कि इस बार आरबीआई कुछ सहजता दिखाएगा और मौद्रिक नीति के मामले में अधिक सहायक बन जाएगा। हालांकि, आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) में विभिन्न राय रखने वाले सदस्य हो सकते हैं, बारुआ का मानना है कि अधिकांश सदस्यों के बीच एकमत नहीं था और यही कारण है कि समिति इस बार भी अपने कठोर रुख पर कायम रही।
उन्होंने यह भी इंगित किया कि उच्च ब्याज दरों को बनाए रखने के कुछ लागत हैं, जिन्हें नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है। उच्च ब्याज दरें न केवल ऋण प्राप्त करना कठिन बनाती हैं बल्कि आर्थिक निर्माण और विकास को भी धीमा करती हैं।
महंगाई पर ज़ोर
आरबीआई के इस कठोर रुख को लेकर बारुआ ने कहा कि मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों में महंगाई को नियंत्रित करना आवश्यक हो सकता है। आरबीआई का 4% का महंगाई लक्ष्य और खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि दोनों ही मौद्रिक नीति पर प्रभाव डालते हैं। बारुआ ने इस दौरान महंगाई को नियंत्रित रखने के लिए किए गए प्रयासों की प्रशंसा की, लेकिन यह भी जोड़ा कि आर्थिक विस्तार भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
इस संदर्भ में, अबीक बारुआ ने वैश्विक आर्थिक स्थितियों का भी जिक्र किया। उन्होंने बताया कि जहां वैश्विक केंद्रीय बैंक, जैसे कि फ़ेडरल रिजर्व, ब्याज दर में कटौती की बात कर रहे हैं, वहीं भारतीय रिजर्व बैंक ने लगातार नौवीं बार दरों को स्थिर रखा है।
वैश्विक संदर्भ में भारत
अबीक बारुआ का मानना है कि आरबीआई को वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपने निर्णय लेने चाहिए। वैश्विक अर्थव्यवस्था के संदर्भ में किए गए नीतिगत फैसले भारत पर भी असर डाल सकते हैं। उन्होंने यह कहा कि आरबीआई का यह कदम भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए संभावित प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
बारुआ ने निष्कर्ष निकाला कि आरबीआई को महंगाई से लड़ने के साथ-साथ उच्च उधारी दरों की लागत और आर्थिक विकास पर इसके प्रभाव को संतुलित करना चाहिए। उन्होंने इस पर जोर दिया कि मौद्रिक नीति अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील और समझदारीपूर्ण होनी चाहिए, जो स्थानीय और वैश्विक दोनों ही कारकों को ध्यान में रखती हो।
इस बिंदु पर बारुआ के विचार मौद्रिक नीति के निर्णय में निहित जटिलताएं और धीरज को उजागर करते हैं। उनके विचार अनुसार, प्रतिबंधात्मक नीतियां आर्थिक वृद्धि को धीमा कर सकती हैं, जबकि अधिक उदार नीति आर्थिक सुधार को गति दे सकती है।
आरबीआई की नीतिगत दिशा
भारतीय रिजर्व बैंक का मौद्रिक नीति निर्णय देश की आर्थिक दिशा को प्रभावित करता है। यह नीति बैंक की ब्याज दरों, मुद्रा आपूर्ति, और वित्तीय स्वास्थ्य पर आधारित होती है। बारुआ का मानना है कि आरबीआई का इस बार का निर्णय, जहां महंगाई को नियंत्रित रखने पर जोर दिया गया है, वास्तविक अर्थव्यवस्था की जरूरतों के साथ संतुलन नहीं बैठा रहा है।
- उच्च ब्याज दरें आर्थिक विकास को दबा सकती हैं।
- ऋण प्राप्त करना होता है कठिन।
- उधारी दरों की लागत बढ़ जाती है।
- निवेश और निर्माण परियोजनाओं पर असर पड़ता है।
मौद्रिक नीति के इस कठोर रुख के बावजूद, बारुआ सुझाव देते हैं कि हमें एक संतुलन की जरूरत है। महंगाई पर नियंत्रण रखते हुए हमें आर्थिक वृद्धि की दिशा में भी काम करना चाहिए। उनके विचार में, एक अधिक सामंजस्यपूर्ण और सुसंगठित नीति अपनानी होगी जो सभी महत्वपूर्ण कारकों का ख्याल रखे।
आरबीआई का यह निर्णय किसी एक सदस्य का नहीं होता, बल्कि पूरी समिति के विचार और उनके बहस का परिणाम होता है। इसलिए विभिन्न विचार और दृष्टिकोण होने स्वाभाविक हैं, और यही प्रक्रिया मौद्रिक नीति को और अधिक सुगठित बनाती है।
अंत में, अबीक बारुआ का यह कहना कि मौद्रिक नीति को अधिक सहज और संतुलित होना चाहिए, यह दर्शाता है कि भारत की आर्थिक संवेदनशीलता की दृष्टि से हमें एक अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता है। यह न केवल मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों को संभालने में मदद करेगा, बल्कि भविष्य के लिए भी अधिक स्थिर और सशक्त नीति सुनिश्चित करेगा।
टिप्पणि
Pradeep Asthana
9/अग॰/2024ये RBI वाले तो हमेशा एक ही गाना गाते हैं - महंगाई बढ़ रही है, महंगाई बढ़ रही है... पर खाने की चीजों की कीमतें क्यों बढ़ रही हैं? इसका जवाब कोई नहीं देता। बस ब्याज बढ़ा दो, सब ठीक हो जाएगा। बकवास है ये सब।
Shreyash Kaswa
9/अग॰/2024हम देश की सुरक्षा के लिए ब्याज दरें ऊंची रख रहे हैं। विदेशी निवेश भारत में आ रहा है क्योंकि हमारी नीति स्थिर है। बारुआ जैसे लोग अपनी बैंक की लाभ की बात कर रहे हैं, देश की आर्थिक सुरक्षा की नहीं।
Sweety Spicy
9/अग॰/2024ओह माय गॉड। फिर से एक और अर्थशास्त्री जो सोचता है कि वो दुनिया का सबसे बुद्धिमान इंसान है। ब्याज दरें घटाओ... फिर बाजार तोड़ देगा। जब तक आप अपने लिए नहीं बनाएंगे एक नया अर्थव्यवस्था, तब तक ये सब बकवास चलता रहेगा। मैंने तो सुना है कि अमेरिका ब्याज घटा रहा है? तो फिर भारत क्यों नहीं? क्योंकि हम अभी भी ब्रिटिश बैंकिंग सिस्टम के नीचे खड़े हैं। 😤
Maj Pedersen
9/अग॰/2024हमें यह समझना चाहिए कि अर्थव्यवस्था एक जीवित प्रणाली है। जब एक हिस्सा बीमार होता है, तो पूरा शरीर प्रभावित होता है। बारुआ के विचार बहुत महत्वपूर्ण हैं। हमें अपनी नीतियों में अधिक संवेदनशीलता लाने की आवश्यकता है। आर्थिक विकास और महंगाई दोनों का संतुलन संभव है।
Ratanbir Kalra
9/अग॰/2024ब्याज दरें बढ़ी तो निवेश घटेगा तो बेरोजगारी बढ़ेगी तो लोग बेचारे भूखे रहेंगे तो फिर क्या होगा तो क्या होगा तो क्या होगा
Seemana Borkotoky
9/अग॰/2024मैं अपने दादा को याद करती हूं जो बताते थे कि जब ब्याज दरें ऊंची होती थीं, तो लोग जमीन बेचकर खाना खरीदते थे। आज का दौर बहुत अलग है, लेकिन दर्द वही है। हमें अपनी जड़ों को याद करना होगा।
Sarvasv Arora
9/अग॰/2024RBI के ये लोग तो बस अपनी बाहों में बैठे हैं और देख रहे हैं कि कैसे आम आदमी जल रहा है। ब्याज दरें बढ़ाना तो बहुत आसान है... बस एक बटन दबा दो। पर जब एक छोटा व्यापारी अपना बिजनेस बंद कर दे तो कौन जिम्मेदार होगा? क्या तुम भी उसके बच्चों को खिलाओगे?
Jasdeep Singh
9/अग॰/2024महंगाई का नियंत्रण अर्थव्यवस्था की आधारशिला है। यदि आरबीआई ने ब्याज दरें घटाईं, तो निवेशक भारत से भाग जाएंगे। वैश्विक बाजार में भारत की विश्वसनीयता बनी रहे इसके लिए ये नीति आवश्यक है। बारुआ के विचार अनुभवहीन हैं। वे बैंकिंग लोग हैं, न कि अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञ। उन्हें अपने बैंक के लाभ के बारे में सोचना चाहिए, न कि देश के बारे में।
Rakesh Joshi
9/अग॰/2024हम भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बहुत गर्व कर सकते हैं। हमारी आर्थिक स्थिरता दुनिया में एक उदाहरण है। ब्याज दरें ऊंची हैं? तो क्या? हम बढ़ रहे हैं! बारुआ को अपने डर को छोड़ देना चाहिए। हम एक शक्तिशाली देश हैं, और हम अपनी नीतियों को अपने तरीके से बनाएंगे। जय हिंद!
HIMANSHU KANDPAL
9/अग॰/2024मैंने तो बस एक बार इस पोस्ट को पढ़ा और तुरंत रो पड़ा। ये सब बातें तो बहुत गहरी हैं... मैं तो सोचता हूं कि अगर ये ब्याज दरें घट गईं तो क्या होगा? क्या हम एक नए युग की शुरुआत कर सकते हैं? या फिर हम सब अंधेरे में खो जाएंगे? अरे भगवान... ये बातें तो मेरे दिमाग में घूम रही हैं।
Arya Darmawan
9/अग॰/2024बारुआ के विचार बहुत सही हैं। आरबीआई को ब्याज दरों को स्थिर रखने के बजाय, एक अधिक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। हमारे छोटे व्यापारियों को ऋण मिल रहा है? हमारे युवा उद्यमियों के पास पूंजी है? नहीं। अगर हम ब्याज दरें थोड़ी घटा दें, तो निवेश बढ़ेगा, रोजगार बढ़ेगा, और महंगाई भी स्थिर रहेगी। ये संभव है। बस थोड़ी सी समझदारी की जरूरत है।
Raghav Khanna
9/अग॰/2024मौद्रिक नीति के निर्माण में विभिन्न दृष्टिकोणों का समावेश अत्यंत महत्वपूर्ण है। अबीक बारुआ के विचारों को गंभीरता से लेना चाहिए, क्योंकि वे व्यावहारिक अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से देख रहे हैं। आरबीआई को अपनी नीतियों में अधिक लचीलापन लाना चाहिए, ताकि आर्थिक विकास और महंगाई नियंत्रण दोनों का समान ध्यान रखा जा सके।
Rohith Reddy
9/अग॰/2024क्या तुम्हें पता है कि ये सब एक चाल है? ब्याज दरें ऊंची रखने का मतलब है कि बड़े बैंक और बड़े निवेशक लाभ उठा रहे हैं। आम आदमी को तो बस ब्याज देना है। ये सब एक षड्यंत्र है। अमेरिका ने ब्याज घटाया? तो फिर हम क्यों नहीं? क्योंकि हमारी सरकार अमेरिका के लिए काम करती है। तुम सब जागो।
Vidhinesh Yadav
9/अग॰/2024मैंने इस पोस्ट को पढ़ा और लगा कि हम बहुत ज्यादा ब्याज दरों पर ध्यान दे रहे हैं। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि अगर हम बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं दें, तो लोग अधिक उत्पादक हो जाएंगे? तो क्या हमें ब्याज दरों के बजाय इन चीजों पर ध्यान देना चाहिए?
Nripen chandra Singh
9/अग॰/2024सच तो ये है कि हम एक ऐसे देश में रह रहे हैं जहां ब्याज दरें बढ़ने का मतलब है कि अमीर अमीर हो रहे हैं और गरीब गरीब हो रहे हैं। ये बात कोई नहीं बताता। बारुआ जैसे लोग तो बस एक बार बोल देते हैं और चले जाते हैं। लेकिन जो लोग रोज भूखे सोते हैं उनकी कोई आवाज नहीं है।
Rahul Tamboli
9/अग॰/2024महंगाई बढ़ी? ब्याज बढ़ा दो 😤💸 ब्याज बढ़ा? घर बेच दो 😭📉 घर बेचा? बच्चों को भेज दो अमेरिका 😎✈️ ये है भारत की आर्थिक रणनीति। अबीक बारुआ तो बस एक और आवाज है जो बोल रहा है... पर कोई सुन रहा है? नहीं। बस एक बार फिर से एक बड़ा बैंक लाभ ले रहा है। 🤡 #RBI #JugaadEconomy
Jayasree Sinha
9/अग॰/2024अबीक बारुआ के विचार बहुत विवेकपूर्ण हैं। आरबीआई को अपनी मौद्रिक नीति में लचीलापन लाना चाहिए। महंगाई का नियंत्रण जरूरी है, लेकिन आर्थिक विकास को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। एक संतुलित दृष्टिकोण ही भविष्य के लिए सही रास्ता है।
Vaibhav Patle
9/अग॰/2024हमें इस बात पर गर्व करना चाहिए कि भारत एक ऐसा देश है जहां आर्थिक स्थिरता को बनाए रखने के लिए मेहनत की जा रही है। ब्याज दरें ऊंची हैं, लेकिन ये हमारी आर्थिक जिम्मेदारी का प्रतीक है। बारुआ के विचार अच्छे हैं, लेकिन हमें लंबे समय तक देखना होगा। एक बार में सब कुछ नहीं बदल सकता। आगे बढ़ते रहें, हम जीतेंगे! 💪🇮🇳