यूएस फेडरल रिजर्व ने बुधवार को अपनी दो दिवसीय बैठक के बाद घोषणा की कि वह बेंचमार्क ब्याज दर को 5.25-5.50% पर स्थिर रखेगा। यह निर्णय आर्थिक विश्लेषकों की उम्मीदों के अनुरूप था। फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (FOMC) ने पुष्टि की कि जुलाई 2023 से ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं हुआ है, जब फेड ने महामारी के बाद से उच्चतम महंगाई से निपटने के प्रयासों के रूप में दरों को बढ़ाया था।
मार्च 2022 से लेकर जुलाई 2023 तक, फेड ने ब्याज दरों में कुल 525 बेसिस पॉइंट्स की वृद्धि की थी ताकि महंगाई पर काबू पाया जा सके। उस समय अमेरिकी अर्थव्यवस्था महंगाई के उच्चतम स्तर पर थी, जिससे उपभोक्ताओं और व्यापारों पर भारी दबाव पड़ा। हालांकि, फेड की स्पष्ट नीति और कठोर निर्णयों ने धीरे-धीरे महंगाई को कम करने में मदद की और वर्तमान में यह 2.5% वार्षिक दर पर है।
महंगाई के नियंत्रण में आने के साथ-साथ अमेरिकी अर्थव्यवस्था भी मजबूत प्रदर्शन कर रही है। दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट 2.8% दर्ज की गई, जो उपभोक्ता खर्च और व्यापार निवेश में वृद्धि के कारण संभव हुआ। इस वृद्धि ने संकेत दिया कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था तंदुरुस्त है और सही दिशा में बढ़ रही है।
17-18 सितंबर को आयोजित होने वाली अगली FOMC बैठक पर सभी की निगाहें टिकी होंगी, जहां यह संभावना है कि फेड अपनी भविष्य की दर नीतियों पर कुछ दिशा-निर्देश दे सकता है। फेड चेयरमैन जेरोम पॉवेल के भाषण का भी इंतजार किया जा रहा है, जो भावी दर निर्णयों पर प्रकाश डाल सकता है।
अमित गोयल, Pace 360 के सह-संस्थापक और मुख्य वैश्विक रणनीतिकार ने कहा कि सितंबर में संभावित दर कटौती भारतीय बाजारों पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। यह कदम गोल्ड और इक्विटी की कीमतों में वृद्धि ला सकता है, जिससे निवेशकों को लाभ हो सकता है। भारतीय बाजार, जो निफ्टी 25,000 के आंकड़े के करीब रह रहा है, इस समाचार से नई ऊंचाइयों को छू सकता है।
यूएस फेडरल रिजर्व के इस निर्णायक रुख और महंगाई तथा दरों पर उनकी संजीदगी ने वैश्विक बाजारों को स्थिरता प्रदान की है। अमेरिकी उपभोक्ता खर्च और व्यापार निवेश में वृद्धि ने प्रदर्शित किया कि अर्थव्यवस्था ठोस आधार पर खड़ी है। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि आगामी महीनों में फेड किस तरह के निर्णय लेता है और इससे वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर क्या प्रभाव पड़ता है।
महंगाई पर नियंत्रण
सख्त नीतियों के परिणाम
फेड की सख्त नीतियां, जैसे ब्याज दरों में बढ़ोतरी, ने महंगाई को नियंत्रित करने में कारगर भूमिका निभाई है। इसके पीछे का उद्देश्य था कि बढ़ती कीमतों के दौर में अर्थव्यवस्था को संतुलित करना। महंगाई, जो एक समय 8% से ऊपर थी, अब फेड के 2% लक्ष्य के करीब आ चुकी है। यह न केवल अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए राहत की बात है, बल्कि वैश्विक बाजारों के लिए भी सकारात्मक संकेत है।
महंगाई दर में सुधार को देखते हुए, यह संभव है कि फेड भविष्य में दर कटौती के लिए कदम उठाए। हालांकि यह निर्णय मौजूदा आर्थिक संकेतकों और वैश्विक परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था की मजबूती
व्यापार और उपभोक्ता खर्च का योगदान
दूसरी तिमाही में 2.8% की जीडीपी ग्रोथ ने साबित किया कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था एक मजबूत और स्थिर अवस्था में है। उपभोक्ता खर्च के साथ-साथ व्यापार निवेश में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। यह विकास बाजार की सकारात्मक धारणा को दर्शाता है और इससे भविष्य में आर्थिक वृद्धि की उम्मीदें बढ़ जाती हैं।
उपभोक्ता खर्च, जो किसी भी अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण घटक होता है, में सुधार देखने को मिला है। नया डेटा यह दर्शाता है कि उपभोक्ताओं का विश्वास और उनकी खरीद क्षमता मजबूत बनी हुई है। इससे यह संकेत मिलता है कि नागरिकों को अपनी आय और आर्थिक भविष्य पर भरोसा है।
अगले कदम की प्रतीक्षा
सितंबर में संभावित दर कटौती
फेड की अगली बैठक 17-18 सितंबर को होनी है, और इसमें संभावित दर कटौती पर विचार हो सकता है। यदि ऐसा होता है तो यह भारतीय बाजारों के लिए भी महत्वपूर्ण होगा। भारतीय निवेशक इस खबर पर बहुत करीब से नजर रख रहे हैं, क्योंकि यूएस फेड की नीतियों का वैश्विक वित्तीय बाजारों पर व्यापक प्रभाव होता है।
फेड चेयरमैन जेरोम पॉवेल के आगामी भाषण का भी बहुत महत्व है। इसे लेकर उम्मीद की जा रही है कि वह भविष्य की नीतियों के संकेत देंगे और इससे बाजार की दिशा निर्धारित हो सकती है।
अंत में, फेड के निर्णयों और उनकी भावी नीतियों का असर न केवल अमेरिकी बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। बाजार बहुत करीब से फेड की गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं और आने वाले महीनों में होने वाले फैसले महत्वपूर्ण होंगे।
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