देवा फ़िल्म रिव्यू – शाहिद कपूर की नई फिल्म पर सच्ची बातें

अगर आप बॉलीवुड में नया कुछ देखना चाहते हैं तो ‘देवा’ एक विकल्प हो सकता है। इस फ़िल्म को रोशन एंड्रयूज ने डायरेक्ट किया है और शाहिद कपूर मुख्य भूमिका में हैं। कहानी मुंबई पुलिस के एक अफसर के इर्द‑गिर्द घूमती है, लेकिन इसे समझने में ज्यादा झंझट नहीं होगी। नीचे हम फिल्म के तीन बड़े पहलुओं पर बात करेंगे – कहानी व निर्देशन, अभिनय एवं दर्शकों की प्रतिक्रिया.

कहानी और निर्देशन

‘देवा’ मूल रूप से मलयालम फ़िल्म ‘मुंबई पुलिस’ का रीमिक्स है। रोशन ने पुरानी कहानी को थोड़ा बदल कर एक कॉम्प्लेक्स केस के साथ जोड़ा है, जहाँ अफसर देव अंबर (शाहिद) अपने करीबी दोस्त की हत्या के बाद गड़बड़ी में फँस जाता है। फिल्म में सस्पेंस का स्तर ठीक‑ठाक है, लेकिन कई जगहें दोहरावदार लगती हैं। डायरेक्शन साधारण है, ज़्यादा बड़े प्रयोग नहीं हुए – कैमरा वाइड शॉट्स और क्लोज़-अप का संतुलित इस्तेमाल किया गया है। अगर आप तेज़ paced एक्शन की उम्मीद कर रहे थे तो थोड़ा कम मिलेगा, लेकिन कहानी समझने में आसान है।

अभिनय और दर्शकों की प्रतिक्रिया

शाहिद कपूर ने अपने किरदार को भरोसेमंद बनाया है। वह पुलिस अफसर का ठंडा‑सफ़ेद रुख दिखाते हैं, लेकिन अंदर की उलझन भी महसूस होती है। उनके अलावा मुख्य सहायक भूमिका में एक नई अभिनेत्री है जो थोड़ा अनभिज्ञ लगती है, पर कहानी में मदद करती है। फ़िल्म के एक्शन सीन सही ढंग से choreographed हैं, और बैकग्राउंड म्यूज़िक ठीक‑ठाक माहौल बनाता है। दर्शकों की राय मिली-जुली है – कुछ लोग कहानी को “साधारण लेकिन दिलचस्प” कहते हैं, तो कुछ इसे “ज्यादा नई नहीं” कहकर निराश दिखते हैं। सोशल मीडिया पर रिव्यू ज़्यादातर 3‑स्टार के आसपास घूमते हैं।

कुल मिलाकर ‘देवा’ एक ऐसी फ़िल्म है जो आपको बहुत देर तक नहीं बांधेगी, लेकिन अगर आप शाहिद कपूर की फैन हैं या पुलिस थ्रिलर देखना चाहते हैं तो इसे ट्राय कर सकते हैं। याद रखें कि फिल्म का मुख्य मकसद एंटरटेनमेंट देना है, इसलिए इसे गंभीरता से लेनी ज़रूरी नहीं।

शाहिद कपूर की फिल्म 'देवा' का रिव्यू: ढीली कहानी के कारण कमजोर हुई फिल्म

शाहिद कपूर की नवीनतम फिल्म 'देवा' का रिव्यू। फिल्म की कहानी एक ढीले धागे से बंधी लगती है जो इसके केन्द्रीय चरित्र के बावजूद इसकी ताकत को खत्म कर देती है। रामायण की तरह यह फिल्म पुलिस की क्रूरता को उजागर करती है और समाज में व्याप्त हूलिगनिज्म के खिलाफ कहलाती है। जबकि फिल्म का पहला हाफ दिलचस्प है, दूसरा हाफ बहतरी संभावनाओं के बावजूद कमजोर पड़ गया है।

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